कबीर दास के दोहे जानिए सही अर्थ के साथ। Kabir Das Ke Dohe Hindi




नमस्कार दोस्तों आज हमें आपके लिए संत कबीर दास जी के दोहे (Kabir Das Ke Dohe In Hindi) लेकर आये है। यहाँ हम आपको कबीर दास द्वारा बताये गए दोहे बताएँगे और वो भी उनके अर्थ के साथ और उस अर्थ का पूरा स्पस्टीकरण भी।

ये आपके जीवन के लिए के दिशा की तरह काम करेगा। इसके माद्यम से आप अपने जीवन में उस समस्याओ का सामना करना सीख जायेंगे जो की आपके सामने अभी बहुत बड़ी है। इसलिए इस पोस्ट को पूरा जरूर पढ़े और कमेंट में अपनी राय भी जरूर दे।


(1)
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा कोय।

अर्थ - महा कवी कबीर दास (kabir Das Ke Dohe) जी हमें इस में बताना चाहते है की जब वो इस दुनिया में बुराई खोजने गया तो मुझे इस पूरी दुनिया में कोई भी बुरा नहीं मिला। लेकिन जब उन्होंने अपने अंदर ही झाक कर देखा तो उन्होंने पाया की इस दुनिया में तो मुझसे बुरा कोई है ही नहीं।





स्पष्टीकरण - हम सब अपने जीवन में हमेशा दुसरो की बुराईया देखते है लेकिन खुद की बुराईयो को हम नजरअंदाज कर जाते है। जब की हमें ऐसा नहीं करना चाहिए। क्योकि जब हम खुद अपनी बुराइयों को देखना शुरू कर देंगे और दुसरो की बुराइयों को देखना बंद कर देंगे तो हमें पता चलेगा की वो तो कभी बुरे थे ही नहीं नहीं बल्कि हम ही बुरे थे जो दुसरो की बुराइयों को देखते है।


(2)
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।

अर्थ - इसका सही अर्थ है की इस संसार में जितने भी लोग थे वो बड़ी बड़ी किताबो को पढ़ कर मृत्यु को प्राप्त हो गए , लेकिन सब के सब विद्वान नहीं बन पाए। कबीर दास जी का ऐसा मानना है की यदि कोई मनुष्य अपने जीवन में प्रेम मतलब प्यार के केवल ढाई अक्षर भी अच्छी तरीके से पढ ले तो वो भी एक सच्चा ज्ञानी बन जाता है।

स्पष्टीकरण - आप बहुत सी बार ऐसे लोगो से मिले होंगे जो बहुत पढ़े लिखे होते है और  बहुत ही कामियाब भी होते है। लेकिन उन लोगो को अपनी शिक्षा का और अपनी कामयाबी का बहुत घमंड होता है। वो दुनिया को ये दिखाते है की उसके जितना ज्ञानी इस दुनिया में कोई नहीं है।

यही कारण था की कबीर दास का ऐसा मानना था की प्यार के ढाई अक्षर सीख लेने वाला मनुष्य ही ज्ञानी होता है जब की बहुत सारी किताब पढ़ने वाले कभी इतने विद्वान नहीं बन पाते है। वो सफल इंसान तो बन जाते है। लेकिन एक अच्छे व्यक्तित्व के मालिक नहीं बन पाते।


(3)
तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।

अर्थ - कबीर दास (Snat Kabir Das Dohe) यहाँ ये कहना चाहते है उस छोटे से तिनके की कभी निंदा नहीं करनी चाहिए जो आपके पेरो के निचे दब जाता है। क्योकि यदि यही तिनका उड़कर हमारी आँख में गिर जाता है तो वो और भी ज्यादा पीड़ा पहुँचता है।

स्पष्टीकरण - जब भी हमारे जीवन में छोटी छोटी घटनाये घटती है तो हम उसको बहुत बड़ी घटना मान कर कभी अपने जीवन से बाहर नहीं निकल पाते और उसके लिए हमेशा दुसरो को जिम्मेदार मानने लगते है। जबकि हम ये भूल जाते है की ये तो छोटी सी समस्या है यदि ये बड़ी होती तो हमें और भी परेशान कर सकती थी।

इसलिए जीवन में हमेशा परेशनियो से ज्यादा हमें उनके हल पर ध्यान देना चाहिए। ताकि हमारा जीवन सफल हो सके।


(4)
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।

अर्थ - कबीर दास जी ने इस दोहे के माध्यम से बहुत अच्छी बात हमें बताई है इसका अर्थ है की अपने मन में धर्य रखने से सब होता है यदि माली किसी पेड़ और पौधे तो एक बार में ही सौ घड़ो के पानी से भी सींचने लग जाता है तो वो पेड़ फिर भी फल तो तब ही देगा जब उस फल की ऋतू आएगी।

स्पष्टीकरण - ये हमारे जीवन की सफलता के बीच की सबसे बड़ी रुकावट होती है। जब भी हम कोई काम करने लगते है तो हम ये चाहते है की इसका परिणाम हमें एक या दो दिन में ही मिल जाये और जब हमें एक दो दिन में परिणाम नहीं मिलता तो हम उस काम को करना बंद कर देते है। हम सभी में धर्य की बहुत कमी होती है





जोकि हमें सफल नहीं होने देता है। यदि आप किसी सफल आदमी से मिले हो तो आपको पता चलेगा की वो भी एक दम से सफल नहीं हुआ है उसको भी बहुत समस्याओ का सामना करना पड़ा है उसके बाद वो सफल हुआ है यदि आप ये सोचते हो की आपको एक दम से सफलता मिल जाएगी तो ये सबसे बड़ी भूल है।


(5)
जाति पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।

अर्थ - यहाँ कबीर दास जी (Kabir Das Dohe Hindi) कहना चाहते है की जब भी आप किसी से मिले तो कभी उसकी जाति नहीं पूछ कर हमेशा उसके ज्ञान के बारे में पूछना चाहिए। क्योकि हमेशा तलवार का मूल्य ज्यादा होता है जबकि उसकी म्यान मूल्य कुछ नहीं होता जबकि तलवार को म्यान में ही रखा जाता है।

स्पष्टीकरण - हम सब की ये एक बहुत बुरी आदत है की हम हमेशा दुसरो को उनके दिखावे से और पहनावे अच्छा मानने लगते है। जब की कबीर हमें सिखाते है की हमे कभी दुसरो को उनके धन, तन, जाति से नहीं पूछना चाहिए बल्कि उसके ज्ञान और उसकी मन की स्वछता को ध्यान में रखना चाहिए।


(6)
दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त,
अपने याद आवई, जिनका आदि अंत।

अर्थ - कबीर दास जी कहते है की मनुष्य हमेशा दुसरो के दोषो को देख कर हसता है और अपने दोषो को याद भी नहीं करता जिसका ही कोई आदि है और अंत।

स्पष्टीकरण - हमे इसका कोई अधिकार नहीं है की हम दुसरो में दोष खोजते रहे। क्योकि यदि हम दोषो को खोजने निकले तो हमें ये पता चलेगा की जिनते दोष दुसरो में है उससे कई ज्यादा दोष तो हम अपने अंदर लेकर बैठे है। इसलिए हमें दुसरो के जीवन में क्या हो रहा है इसपर ध्यान नहीं देकर अपने खुद के जीवन को हम कैसे बेहतर बना सकते है इसपर ध्यान देना चाहिए।


(7)
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।

अर्थ - जो व्यक्ति कोशिश करता है उस हमेशा कुछ कुछ जरूर मिलता है जैसे एक गोताखोर जब पानी में जाता है तो कुछ कुछ जरूर लाता है। लेकिन कुछ लोग ऐसे होते है जो बस किनारे पर बैठे रहते है वो डूबने के से बैठे रहते है और उनको कुछ भी प्राप्त नहीं होता।
स्पष्टीकरण - हर मनुष्य अपने जीवन में कुछ कुछ तो करना चाहता है लेकिन इन में से कुछ लोगो ऐसे भी है जो बिना कुछ करे सब कुछ पाना चाहते है तो कबीर दास जी इस बारे में बोलते है की जो लोग मेहनत करने से डरते है वो जीवन में कुछ नहीं प्राप्त कर सकते। लेकिन जो मेहनत करते है उनको सब कुछ मिल जाता है।


(8)
बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।

अर्थ - जो व्यक्ति ये जानते है की उसके मुँह से निकली हुई वाणी अनमोल है वो व्यक्ति सदैव ही अपने ह्रदय के तराजू में पहले उस वाणी को तोलता है फिर ही उसको अपने मुख से बाहर आने देता है।

स्पष्टीकरण - हमारे जीवन में कुछ लोग ऐसे होते है जो किसी को भी बिना सोचे समझे कुछ भी बोल देते है। वो ये भी नहीं सोचते है हमारे द्वारा कहे गए शब्दों का सामने वाले पर क्या असर होगा। वो बस अपनी धुन में रहते है वो कुछ भी कह देते है लेकिन जब उनको बाद में इस बात का ज्ञान होता है की ये मेने बहुत गलत किया तब तक बाद बहुत बिगड़ जाती है।

इसलिए हर मनुष्य को अपनी वाणी पर नियंत्रण रखना चाहिए। किसी को कुछ कहने से पहले इस बाद का पता लगा लेना चाहिए की ये जो हम बोल रहे है वो सही है या नहीं।


(9)
अति का भला बोलना, अति की भली चूप,
अति का भला बरसना, अति की भली धूप।

अर्थ - महान कवी कबीर दास (Kabir Dohe Hindi) जी यहाँ कहना चाहते है की आवश्यकता से ज्यादा बोलना अच्छा होता है और नहीं आवश्यकता से ज्यादा चुप रहना अच्छा होता है ठीक वैसे ही जैसे आवश्यकता से ज्यादा बारिश अच्छी  होती है और नहीं आवश्यकता से ज्यादा धुप।

स्पष्टीकरण - यहाँ पर कबीर दास दी ने सबसे ज्यादा जो उन लोगो पर दिया है जो कभी संतुष्ठ नहीं रहते। यहाँ पर उन सीमाओं के बारे में बताया गया है जिससे पार यदि हम जाना चाहे तो वो हमारे लिए बहुत बुरा होता है। क्योकि यदि आप जरूरत से ज्यादा भोजन करते है तो भी आप को दुख हो सकता है और यदि आप कम भोजन करते हो तो भी ये आपके लिए असंतोष का ही कारण होगा। इसलिए जो भी करे वो एक सीमा में रह कर ही करे।



(10)
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।

अर्थ - जो व्यक्ति आपकी बुराई करता है उस व्यक्ति को आपको सदैव अपने समीप रखना चाहिए। क्योकि वो बिना पानी और साबुन के ही हमारी सारी कमियों से हमें अवगत्त करवाता है और हमारे स्वभाव को साफ़ करता है।

स्पष्टीकरण - कबीर दास जी हमें यहाँ ये समझाना चाहते है की हमें अपने  समीप कुछ ऐसे लोगो को भी रखना चाहिए जो हमारी निंदा कर सके। लेकिन यहाँ ये याद रखना चाहिए वो निंदा करने वाला ऐसा होना चाहिए हमारी निंदा हमारे सामने कर सके पीठ पीछे नहीं।





ऐसे व्यक्ति का होना इसलिए जरूरी है क्योकि वो हमें अपनी गलतियों की समय समय पर याद दिलाता है और यदि हम कुछ अच्छा कर रहे है जिसके कारण हमारे अंदर अहंकार का निर्माण हो रहा है तो वो उस अहंकार का भी नाश कर देगा।


(11)
दुर्लभ मानुष जन्म है, देह बारम्बार,
तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि लागे डार।

अर्थ - प्रत्येक मनुष्य को इस संसार में जीवन बहुत मुश्किल से मिलता है और एक ही बार मिलता है। हमारा ये शरीर उस पेड़ के पतों और जड़ो की तरह नहीं है जो एक बार टूट जाने पर दोबारा मिल जाये।

स्पष्टीकरण - कवी कहते है की हमारी इस दुनिया में कुछ लोग ऐसे है जो अपना जीवन पशुओ की तरह व्यतीत कर रहे है मतलब वे खाते है और सो जाते है उनका अपने जीवन में कोई बड़ा लक्ष्य नहीं है। जिन लोगो का अपने जीवन में कोई लक्ष्य नहीं होता उन लोगो को ही कवी ने पशु कहा है।

ये जीवन हमारे लिए बहुत मूल्यवान है ये जीवन हर किसी को ऐसे ही नहीं मिलता हमें अपने इस जीवन का बहुत ही अच्छे से उपयोग करना चाहिए। जब जाकर ही इस धरती पर हमारा जीवन सफल माना जायेगा।



(12)
कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर,
ना काहू से दोस्ती, काहू से बैर।

अर्थ - कबीर इस बाजार रूपी संसार में आकर सब से बस यही चाहता है की सबका भला हो और यदि इस संसार में किसी से दोस्ती नहीं हो तो दुश्मनी भी किसी से नहीं होनी चाहिए।

स्पष्टीकरण - कवि चाहते है की हम इस संसार में तो गए है लेकिन यदि हम किसी को अपना दोस्त नहीं बना पाए तो कोशिश यही करना की आप किसी को अपना दुश्मन भी नहीं बना पाओ। सब सुख से रहे।


(13)
हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी  मुए, मरम कोउ जाना।

अर्थ - कबीर दास जी (Kabir Das Ji Ke Dohe In Hindi) कहते है की सभी हिन्दू कहे हमें राम जी प्यारे और अभी तुर्क (मुस्लिम) कहे हमें रहमान प्यारा। इस लड़ाई में दोनों मर कर मौत के मुँह में चले गए। लेकिन इन दोनों में से कोई भी इस बात की सचाई को नहीं जान पाया।

स्पष्टीकरण - एक समय ऐसा था जब हम सभी में हिन्दू और मुस्लिम का कोई भेद नहीं था। लेकिन कुछ समय से हमारे अंदर ये फर्क बहुत ज्यादा बढ़ गया। ये फर्क हमारे अंदर इतना बढ़ गया है की हम धर्म को लेकर एक दूसरे को मारने को तैयार हो गए है। हिन्दू अपने राम के लिए लड़ रहे है और मुस्लिम अपने रहमान के लिए और इस कारण वो लड़ कर मर ही गए लेकिन वो ये समझ ही नहीं पाए की ये दोनों तो एक ही है।


(14)
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब, 
पल में प्रलय होएगी,बहुरि करेगा कब।

अर्थ - कबीर दास जी समय का मूल्य बताते हुए बोलते है की जो काम आपको कल करना है उस आज ही कर लो। और जो काम आपको आज करना उसको अभी ही खत्म कर दो। क्योकि हमारी मौत का कोई समय नहीं है कभी भी हमारा जीवन समाप्त हो सकता है। फिर आप क्या करोगे।

स्पष्टीकरण - समय हमारे पास कल भी नहीं था और ही कल होगा। इसलिए कोई भी काम करने के लिए समय का बहाना नहीं बनाये। जो काम आप करना चाहते उसके लिए कभी आज या कल का इंतजार नहीं करे। जो भी काम करना हो उसके लिए बस काम करना अभी से शुरू कर दे।


(15)
साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय,
मैं भी भूखा रहूँ, साधु ना भूखा जाय

अर्थ - कबीर जी बस यही कहना चाहते है की हम प्रभु मुझे बस इतना ही दीजिए जिससे में अपने जीवन को अच्छे से व्यतीत कर सकू। में अपने पेट की भूख को शांत कर सकू और यदि कोई मेहमान मेरे घर आये तो वो भी भूखा नहीं जा पाए।






स्पष्टीकरण - कुछ मनुष्य ऐसे होते है जो अपनी इच्छाओ का कभी अंत ही नहीं कर पाते है। वो सदैव अपने पास जो होता है उससे असंतुष्ट रहते है। लेकिन कबीर दास जी का तो बस यही मानना है की हे प्रभु मुझे सदैव अपनी आवश्यकता के अनुसार ही देना ही ज्यादा और ही कम।


(16)
दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै कोय,
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय।

अर्थ - कबीर दास जी ने इस दोहे के माध्यम से बहुत ही जरुरी बात पर ध्यान आकर्षित किया है की हम सब दुःख के समय तो भगवान को याद करते है। लेकिन सुख में हम भगवान को याद करना भूल जाते है। जब की यदि हम सुख में ही भगवान को याद कर ले तो दुःख ही किस बात का हो।

स्पष्टीकरण - दोस्तों आप ऐसे लोगो को तो जरूर जानते होंगे जिनको पुरे साल तो भगवान याद नहीं आते लेकिन जैसे ही उनकी परीक्षा आने लगती है तो उनको सारे भगवान याद आने लग जाते है। कबीर दास जी ने यहाँ ऐसे ही लोगो के ऊपर जोर देते हुए कहा है की हमें हर समय भगवान को याद करना चाहिए। क्योकि जब हम सुख में भी भगवान को याद करते है तो दुःख आने की सम्भवना कम हो जाती है।


(17)
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा कोय।

अर्थ - कबीर दास जी (Hindi Dohe By Kabir Das) यहाँ ये कहना चाहते है की में जब इस दुनिया में बुरे लोगो को खोजने गया तो मुझे इस संसार में कोई भी बुरा नहीं मिला। लेकिन जब मेने अपने अंदर खुद को जानने की कोशिश की तो मुझे पता चला की इस संसार में तो मुझसे बुरा कोई नहीं है।

स्पष्टीकरण - ये दुनिया वो दर्पण है जिसमे आप हो वैसा ही सामने वाला आपको दीखता है मतलब ये है की यदि आप किसी से अच्छा बोलोगे तो वो भी आपसे अच्छी तरीके से ही बात करेगा और यदि आप किसी से बुरा बोलते है तो वो आपसे भी वैसा ही बोलेगा। इसलिए यदि आप अपने व्यवहार को अच्छा कर लेते हो तो सब आपसे अच्छा व्यवहार करेंगे जिससे आप को कोई भी बुरा इंसान आपको नहीं मिलेगा।


(18)
मन मैला तन ऊजला बगुला कपटी अंग,
तासों तो कौआ भला तन मन एकही रंग

अर्थ - यह पर कबीर दास जी ने कोए और बुगले की विशेषता बताते हुए कहा की एक बुगले का शरीर तो वैसे स्वेत होता है लेकिन उसका मन काला होता है मतलब कपट से भरा हुआ होता है इससे तो अच्छा कोवा है जो अंदर से भी काला होता है और बाहर से भी काला होता है लेकिन वो किसी को छलता नहीं है।

स्पष्टीकरण - आप कभी कभी तो ऐसे लोगो से जरूर मिले होंगे जो आपके सामने आपसे अच्छी अच्छी बाते करते है लेकिन आपके पीठ पीछे से वो आपकी लोगो से बुराई करते है। कबीर दास जी ने ऐसे लगू के बारे में ही बताया है की ऐसे लोगो से सावधान रहना चाहिए। ये लोग ही आपके सबसे बड़े दुश्मन होते है।


(19)
रात गंवाई सोय कर दिवस गंवायो खाय,
हीरा जनम अमोल था कौड़ी बदले जाय

अर्थ - आपने अपनी रातो को सोने में और दिन को खाने में बीता दिया और इस अनमोल हीरे के समान जीवन को अपने कामनाओ और वासनाओ में समाप्त कर दिया इससे ज्यादा दुखी बात आपके लिए क्या हो सकती है।

स्पष्टीकरण - यहाँ उन आलसी लोगो की बात हो रही है जो केवल अपने जीवन को सोने, खाने और वासनाओ में बिता देते है। ये भूल जाते है की ये जीवन हमारे लिए बहुत ही अनमोल है। इसका हमें इस प्रकार से नाश नहीं करना चाहिए। यदि आप अपने जीवन को बस इन्ही चीजों में समाप्त कर रहे है तो आपके लिए इससे बड़ा दुःख कुछ ओर हो ही नहीं सकता।


(20)
जो उग्या सो अन्तबै, फूल्या सो कुमलाहीं,
जो चिनिया सो ढही पड़े, जो आया सो जाहीं।

अर्थ - कबीर जी (Kabir Das Hindi Dohe) इस दोहे के माध्यम से कहते है की ये तो संसार का नियम है की जो सूरज उदय हुआ है वो अस्त भी होगा। जो पुष्प आज खिला है वो कल मुर्झायेगा भी। जो छिना है वो गिर कर वापस उसके पास जायेगा भी और जो आया है वो जायेगा भी।

स्पष्टीकरण - इस जीवन के कुछ सार्वभौमिक सत्य है जो हम सब जानते है लेकिन कुछ ऐसे है जो इनको मानते नहीं है। वो इन सत्य को कभी मानना ही नहीं चाहते। कुछ ऐसी चीजे भी होती है जिनको हम बदल नहीं सकते फिर भी वो इनके विपरीत करने की कोशिश करते है। जब की हमें इन सत्य को स्वीकार कर लेना चाहिए। क्योकि जिस का जन्म हुआ है उसकी मृत्यु भी निश्चित ही होती है कोई भी यहाँ अमर नहीं होता।


(21)
कबीर तन पंछी भया, जहां मन तहां उडी जाइ,
जो जैसी संगती कर, सो तैसा ही फल पाइ।

अर्थ - कबीर कह रहे है की मनुष्य का ये देह एक पक्षी के भाति हो गया है जहाँ उसका मन करता है वो वही उड़ जाता है। जैसी एक मनुष्य की संगति होती है वो वैसा ही फल पाने लग जाता है।

स्पष्टीकरण - यहाँ पर कबीर दास जी ने मनुष्य की इच्छाओ और उनके संगति के बारे में बताया है। क्योकि आज के समय में मनुष्य की इच्छाए उसके काबू में नहीं है। जो की ये हमारे असंतोष को जन्म देती है। इसलिए हमें अपनी इच्छाओ और संगतियो पर नियंत्रण रखना चाहिए।


(22)
माया मुई मन मुआ, मरी मरी गया सरीर,
आसा त्रिसना मुई, यों कही गए कबीर।

अर्थ - कबीर दास (Kabir Das Ji Hindi) ने कहा है की मनुष्य के अंदर की तो माया मरती है और ही उसका मन। लेकिन मनुष्य का ये शरीर कई बार मर चूका है। मनुष्य की आशा और तृष्णा कभी नहीं मरती और ये बात कबीर कई बार कह गए।

स्पष्टीकरण - जब हम इस संसार में आते है तो हमारे अंदर की कुछ इच्छाए और तृष्णाएं होती और ये हमारे अंदर समय के अनुसार बढ़ती रहती है। लेकिन जब ये हमारे अंदर आवश्यकता से ज्यादा हो जाती है तो ये कई बार हमारे विनाश का कारण बन जाता है। इसलिए हमें इन पर नियंत्रण रखना चाहिए।

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1 टिप्पणियाँ

  1. पानी गुड़ में डालिए, बीत जाए जब रात।
    सुबह छानकर पीजिए, अच्छे हों हालात।।
    In Dohe ke madhyam se janlo health se jude kai raj

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