हेलो दोस्तों आज हमें आपके लिए गौतम बुद्ध की कहानी (Gautam
Buddha Story In Hindi) लेकर आये है जिस में हम आपको उनके सन्यास से लेकर कैसे वो गौतम बुद्ध बने इसके बारे में विस्तार से बताएँगे। इसके अंदर हम गौतम बुद्ध की पूरी आत्म कथा (Gautam
Buddha Biography In Hindi) के बारे में आपको जानकारी देंगे।
गौतम बुद्ध की कहानी | Gautam
Buddha Story In Hindi | Gautam Buddha Biography In Hindi
गौतम बुद्ध का बचपन
गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। इनका जन्म ईसवी पूर्व 563 में नेपाल के लुंबिनी में हुआ था और इनका निधन 80 वर्ष की आयु में ईसवी पूर्व 483 को भारत के कुशीनगर में हुआ। गौतम वंश में जन्म लेने के कारण ही वो गौतम कहलाये और इनका नाम रखा गया सिद्धार्थ गौतम।
गौतम बुद्ध के पिता का नाम शुद्धो धन और माता का नाम माया देवी था। गौतम बुद्ध की माँ कोलीय वंश की थी जिनका निधन इनके जन्म के 7 दिन के बाद ही हो गया था। इस कारण गौतम बुद्ध का पालन पोषण उनकी माँ की सगी बहन महा प्रजापति गौतमी ने किया जो की शुद्धोधन की दूसरी महारानी थी।
गौतम बुद्ध का विवाह
16 वर्ष की आयु में ही सिद्धार्थ का विवाह यशोधरा नाम की एक राज कुमारी से करा दिया गया। विवाह के कुछ समय पश्चात ही उनके एक पुत्र हुआ जिसका नाम उन्होंने राहुल रखा था।
ब्राह्मणो की भविष्यवाणी
जब सिद्धार्थ का जन्म समारोह कराया गया तो 8 ब्राह्मणो को भी बुलाया गया। तो राजा ने उन सब ब्राह्मणो से कहा की आप सब मुझे ये बताईये की मेरे बेटे का भविष्य क्या होगा। तो उनमे से कुछ ब्राह्मणो ने कहा की महाराज ये राजा बनेगा और कुछ ब्राह्मणो ने कहा की महाराज ये सब कुछ छोड़ कर सन्यास ले लेगा। तब ही एक ब्राह्मण ने कहा की महाराज में आपको सबसे सही सटीक भविष्यवाणी बता देता हु की ये बालक बड़ा होकर सन्यासी हो जायेगा।
राजा को ये सुन कर बहुत दुःख हुआ की उनका एक ही बेटा है और वो भी बड़ा हो कर सन्यासी हो जायेगा जबकि राजा की तो ये इच्छा थी की उसका बेटा राजा बने और पूरी दुनिया पर राज करे।
तो राजा ने उस ब्राह्मण से पूछा की अब इसका क्या उपाय है हम कैसे इसको एक सन्यासी बनने से रोक सकते है। फिर ब्राह्मण के राजा को बताया की महाराज इस बालक को इस संसार के सभी दुखो से दूर रखना होगा। क्योकि जिससे दिन इस बालक को संसार में कितने दुःख है इस बात का अहसास हुआ उस ही दिन से सन्यासी हो जायेगा। इस बालक के सामने आपको ये दिखाना है की इस संसार में दुःख जैसी कोई चीज ही नहीं है।
गौतम बुध का गुप्त पालन पोषण
ये जानने के बाद राजा ने ये निर्णय लिया की आज से हम सिद्धार्थ को कभी दुखो का अनुभव नहीं होने देंगे। इस ही कारण फिर उनकी महल से बाहर जाने में पाबंदी लगा दी गयी और उनकी पूरी परवरिश महल के अंदर हुई संसार की वास्तिवकता से बिलकुल दूर। महाराज ने अपने पुत्र को संसार के दुखो से दूर रखने के लिए भोग विलास का पूरा प्रबंध किया गया उनके लिए हर ऋतू के अनुसार अलग अलग महल बनवाये गए। मनोरंजन से संबंधित सभी सामग्रियों का प्रबंध किया करवाया गया। इन सब के बीच में ही १६ वर्ष की आयु में इनका विवाह यशोधरा नाम की एक कन्या के साथ हुआ। इसके कुछ समय बाद ही राहुल नाम का एक पुत्र हुआ।
गौतम बुद्ध का वास्तविकता से परिचय
इन सब के होते हुए भी सिद्धार्थ स्वयं को संसार से दूर नहीं रख पाए और एक दिन वो बाहर बगीचे में सैर करने चले गये। तो उन्होंने देखा की एक बहुत ही बुजुर्ग आदमी लाठी के सहारे झुक कर चल रहा था। जिसके दांत टूटे हुए थे, उसका शरीर बिलकुल टेड़ा मतलब झुका हुआ था, उसके हाथ और पैर काँप रहे थे, सड़क पर चल रहा था। उस आदमी को देख कर सिद्धार्थ ने अपने सेवक से पूछते है इस आदमी को क्या हुआ है तो उसने बता की ये आदमी बूढ़ा हो गया है जब हमारी आयु आधी हो जाती है तो ये हमारी एक अवस्था होती है। ये देख कर सिद्धार्थ को बहुत दुःख हुआ और वो वापस महल लोट गए।
जब दूसरी बार सिद्धार्थ घूमने आये तो फिर से एक आदमी को देखा जो की बीमार था उसका चेहरा पीला पड़ा हुआ था, शरीर एक दम ढीला सा था और दसरे के सहारे से चल पा रहा था। फिर से सिद्धार्थ ने अपने सेवक से पूछा की ये ऐसा क्यों है। तो सेवक ने बताया की कुमार ये बीमार है ये कुछ रोगो से ग्रसित है। उस रोगी की हालत देख कर सिद्धार्थ को फिर से दुःख हुआ और वो महल वापस लोट गए।
फिर से वो बाहर धूमने ये तो इस बार उन्होंने एक अर्थी देखी। अर्थी को देख कर फिर से उन्होंने सेवक से पूछा की इस को कहा ले जा रहे है। तो सेवक ने बताया की हे कुमार इस व्यक्ति की मृत्यु हो गयी है और इसको जलाने के लिए ले जा रहे है। फिर सिद्धार्थ ने पूछा की ये मृत्यु क्या होती है। तो सेवक बताता है की हे कुमार एक दिन हर मनुष्य को संसार को छोड़ कर जाना होता है। जो मनुष्य इस धरती पर आया है एक न एक दिन उसको ये संसार छोड़ कर जाना ही होगा। फिर से सिद्धार्थ ने सेवक से पूछा की क्या एक दिन में भी मृत्यु को प्राप्त हो जाऊंगा। तो सेवक बोलै है राजकुमार। इस के बाद वो अपने महल में लोट गए।
मुक्ति के उपाये की खोज
इन तीनो दिन की घटना ने सिद्धार्थ को बहुत चोट पहुंचाई और वो ये सब सोच कर परेशान होने लगे और ये सोचने लगे की क्या इन सब से मुक्ति पाने का कोई उपाए है या नहीं। ये सब प्रश्न ऐसे थे जो उनको अब चने से सोने भी नहीं देते थे और वो हमेशा इन सब से छूट करा पाने का उपाये सोचने में लगे रहते थे।
फिर एक दिन ऐसा आया जब उनको रास्ते में एक सन्यासी दिखाई दिया। सिद्धार्थ ने देखा की उसके चेहरे पर एक शांति थी उसने एक सन्यासी के ही वस्त्र भी पहने हुए थे। तो उन्होंने उस सेवक से पूछा की ये कौन है तो सेवक ने बताया की ये एक सन्यासी है। तो सिद्धार्थ ने पूछा की ये सन्यासी कौन होते है। तब सेवक ने बताया की राजकुमार ये वो होते है जो अपने सारे संसारिक सुखो का त्याग कर के वन में तपस्या करने के लिए चले जाते है और ये अपना सारा जीवन एक सन्यासी बन कर ही व्यतीत करे है।
गौतम बुद्ध का सन्यास का निर्णय
फिर एक रात को उन्होंने निश्चय किया की में भी अब इस राज पाट को छोड़ कर एक सन्यासी बन जाऊंगा। उसकी अगली ही रात को सिद्धार्थ अपनी पत्नी और बच्चे, सारा सांसारिक सुखो को त्याग कर वन में तपस्या के लिए निकल गए।
सन्यासी बनने के बाद उन्होंने पहले तो भिक्षा मांगना शुरू किया फिर धीरे-धीरे उन्होंने योग साधना सीखी, समाधी लगाना सीखे। ये लेकिन ये सब कर के भी उनको संतोष प्राप्त नहीं हुआ। फिर उन्होंने तपस्या करना शुरू किया। शुरुआत में तो सिद्धार्थ ने तिल - चावल खा कर तपस्या करना आरम्भ किया लेकिन बाद में उन्होंने भोजन करना भी बंद कर दिया। जिससे उनका शरीर बहुत कमजोर हो गया। उनकी इस तपस्या को ६ साल बीत गए लेकिन तपस्या सफल नहीं हुई।
गौतम के मध्य मार्ग की खोज
फिर एक बार उन्होंने अपने तपस्या के दौरान कुछ स्त्रियों को एक गीत आगे हुए सुना जिससे वो बोल रही थी की "वीणा के तारो को ढीला मत छोडो। ढीला छोड़ देने से उनका सुरीला स्वर नहीं निकलेगा। पर तारो को इतना कसो भी मत की वे टूट जाये। ये बात उनके दिमाग में बैठ गयी और वो ये समझ गए की यदि मुझे शांति के लिए तपस्या करनी है तो नियमित रूप से आहार और योग दोनों की ही जरूरत है। उन्होंने ये जाना की सबसे उतम मार्ग मध्य का होता है और इसके लिए कड़ी तपस्या करनी पड़ती है।
गौतम की तपस्या की सफलता
३५ वर्ष की में सिद्धार्थ ने वैशाखी पूर्णिमा के दिन एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ कर बौद्ध गया में निरंजना नदी के तट पर कठोर तपस्या की। इस ही बीच एक सुजाता नाम की एक विवाहित स्त्री ने एक पुत्र को जन्म दिया। इस पुत्र की प्राप्ति सुजाता को बहुत ही मुश्किल से हुई थी। तो सुजाता ने पीपल के वृक्ष के सामने जाकर कहा की है वृक्ष देवता यदि आप मुझे एक पुत्र दिला दे तो में आपको खीर जरूर चढ़ाउंगी। सुजाता की ये इच्छा पूर्ण हो गयी। इच्छा के पूर्ण होने के बाद वो सोने की थाल में खीर लेकर पीपल के पेड़ के पास पहुंची तो उसने देखा की एक व्यक्ति उस पीपल के पेड़ के नीचे बैठ कर कड़ी तपस्या कर रहा है। ये दृश्य देख कर सुजाता को ऐसा लगने लगा की मानो जैसे पीपल देवता खुद इंसान के रूप में तपस्या करने आ गए हो।
सिद्धार्थ से बुद्ध नाम की प्राप्ति
फिर सुजाता सिद्धार्थ के पास गयी और बहुत ही प्रेम से खीर उनको भेट की और कहा की जैसे मेरी मनोकामना पूरी हुई है वैसे आपकी भी हो और उस ही रात को ध्यान लगाने पर सिद्धार्थ की साधना सफल हुयी। बस उस ही दिन से सिद्धार्थ बौद्ध कहलाये। जिस पीपल के वर्ष के नीचे बुद्ध ने कठिन तपस्या की वही वर्ष बोधिवृक्ष के नाम से पहचाने जाने लगा और उस वृक्ष के समीप वो से स्थान को बोधगया के नाम से प्रचलित हुआ।
बौद्ध धर्म की स्थापना और प्रचार
जब उन्होंने अपने धर्म का उल्लेख करने का निर्णय लिए तो उन्होंने इसका उल्लेख संस्कृत में नहीं कर के उस समय की सबसे सरल लोकभाषा पाली में इसका प्रचार और प्रसार किया जाने लगा। संस्कृत से सरल भाषा होने के कारण बौद्ध धर्म की लोक प्रियता बहुत तेजी से बढ़ने लगी। ये कार्य उन्होंने उस वृक्ष के नीचे बैठ कर ही किया और ये क्या उन्होने ४ सप्ताह में किया उसके बाद वो अपने धर्म का उपदेश देने के लिए वहां से निकल पड़े।
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गौतम बुद्ध वहां से निकले ने बाद काशी के समीप मृग दाव में पहुंचे। उस ही स्थान पर गौतम बुद्ध ने धर्म का उपदेश दिया और जो सबसे पहले ५ उसके पास इस धर्म को जानने की इच्छा लेकर आये उन को बुद्ध ने अपना अनुयायी बना लिया और उनको दूसरी जगह पर अपने धर्म के प्रचार के लिए भेज दिया।
अंतिम भोजन
फिर इन सब के बाद में वो क्षण आया जिस में बुद्ध ने घोषणा की के वो अब परिनिवार्ण के लिए रवाना होंगे। बुद्ध ने अपना आखरी भोजन ग्रहण किया। जिससे उन्होंने ये भोजन किया था वो कुंठा नाम के एक लोहार से एक उपहार के रूप में किया था। इसके बाद उनकी हालत और गंभीर हो गयी जिस कारण वो बीमार हो गए। जब भोजन की वजह से उनकी तबियत ओर ज्यादा खराब होने लगी तो वो लोहार अपने आपको दोषी मानने लगता। तब बुद्ध ने आनंद से कहा जोकि बुद्ध का सबसे प्रिय शिष्य था की तुम कुंठा को समझाओ की इसमें उसका कोई दोष नहीं है ये भोजन तो अतुल्य है।
बौद्ध धर्म के मुख्य उपदेश
गौतम बुद्ध ने अपने धर्मोपदेष में लोगो को मध्यस्ता के मार्ग पर चलने का उपदेश दिया। उन्होंने दुखो के कारण और उनके निवारण के बारे में भी बताया। भगवान गौतम बुद्ध ने अहिंसा पर सबसे ज्यादा जोर दिया। उन्होंने यज्ञ में पशुओ की बलि का कड़ा विरोध किया है। गौतम बुद्ध ने सनातन धर्म के कुछ संकल्पो का भी प्रचार किया। जैसे - वैदिक यज्ञ, गायत्री मंत्र।
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